कहते हैं कि मुग़ल बादशाह जहांगीर जब पहली बार कश्मीर पहुंचे तो उनके मुंह से सहसा निकल पड़ा "जन्नत अगर कहीं है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।" भारत का मुकुटमणि, धरती का स्वर्ग, यूरोप का स्विट्ज़रलैंड, कुदरत की कारीगरी और अकूत खूबसूरती का खजाना, पहाड़, झीलें, वनस्पति, हरियाली, महकती पवन... ऐसा लगता है मानो पूरा-का-पूरा ‘स्वर्ग’ धरती पर उतर आया हो! यह नजारा है कश्मीर की धरती का. तभी तो इसे धरती का ‘स्वर्ग’ कहा जाता है।
कहते हैं कि मुग़ल बादशाह जहांगीर जब पहली बार कश्मीर पहुंचे तो उनके मुंह से सहसा निकल पड़ा "जन्नत अगर कहीं है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।" भारत का मुकुटमणि, धरती का स्वर्ग, यूरोप का स्विट्ज़रलैंड, कुदरत की कारीगरी और अकूत खूबसूरती का खजाना, पहाड़, झीलें, वनस्पति, हरियाली, महकती पवन... ऐसा लगता है मानो पूरा-का-पूरा ‘स्वर्ग’ धरती पर उतर आया हो! यह नजारा है कश्मीर की धरती का. तभी तो इसे धरती का ‘स्वर्ग’ कहा जाता है।
कश्मीर घाटी का नाम कश्मीर कैसे पड़ा? इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है।
'कश्मीर' को कश्मीरी भाषा में कशीर तथा इस भाषा को का 'शुर' कहते हैं। 'कश्मीर' शब्द के कशमीर, काश्मीर, काशमीर आदि पर्यायवाची भी मिलते हैं। इन में से सवार्धिक प्रचलित शब्द कश्मीर ही है। इस शब्द की व्युत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक मत हैं। एक मत के अनुसार कश्मीर को कश्यप ऋषि ने बसाया था और उन्हीं के नाम पर इस भूभाग को ‘कश्यपपुर’ कहा जाता था जो बाद में बिगड़कर ‘कश्मीर’ बन गया।
आज से सहस्रों वर्ष पूर्व यह भूखण्ड पूर्णतया जलमग्न था जिसमें जलद्भू नाम का एक दैत्य निवास करता था। इस दैत्य ने अखण्ड तपस्या द्वारा ब्रह्मा से तीन वरदान प्राप्त कर लिये थे -जल से अमरत्व, अतुलनीय विक्रम तथा मायाशक्ति की प्राप्ति।
यह दैत्य इन वरदानों को प्राप्त कर निरंकुश हो गया था और तत्कालीन जनता को, जो आसपास की पहाड़ियों पर रहती थी, संत्रस्त करने लगा। उस पापी के आतंक से सारा देश जनशून्य हो गया था। एक बार बह्मापुत्र कश्यप ने इस भू-भाग की यात्रा की। यहां की दुरवस्था का जब उन्होंने लोगों से कारण पूछा तो उन्होंने जलद्भू दैत्य का सारा वृत्तान्त सुनाया जिसे सुनकर कश्यप का हृदय दयार्द्र हो उठा। उन्होंने तुरन्त इस भूखण्ड का उद्धार करने का निश्चय कर लिया। वे हरिपुर के निकट नौबन्धन में रहने लगे तथा यहां पर उन्होंने एक सहस्र वर्षों तक महादेव की तपस्या की। महादेव कश्यप की तपस्या से प्रसन्न हो गये तथा उन्होंने जलद्भू दैत्य का अन्त करने की प्रार्थना स्वीकार कर ली। महादेव ने दैत्य का अन्त करने के लिए विष्णु और ब्रह्मा की भी सहायता ली। ऐसा माना जाता है कि विष्णु और दैत्य के बीच सौ वर्षों तक युद्ध चलता रहा।
विष्णु ने जब देखा कि दैत्य जल और पंक में रहकर अपनी रक्षा करता है तो उन्होंने वराहमूला/बारामूला के समीप जल का निकास कराया। जल से निकलते ही दैत्य दृष्टिगोचर होने लगा। दैत्य को पकड़कर उसका अन्त कर दिया गया।
चूंकि यह सत्कार्य कश्यप की कृपा से संपन्न हुआ था इसलिए 'कशिपसर', 'कश्यपुर', 'कश्यपमर, आदि नामों से यह घाटी प्रसिद्ध हो गई।
एक अन्य मत के अनुसार कश्मीर ‘क’ व ‘समीर’ के योग से बना है।‘क’ का अर्थ है जल और ‘समीर’ का अर्थ है हवा। जलवायु की श्रेष्ठता के कारण यह घाटी ‘कसमीर’ कहलायी और बाद में ‘कसमीर’ से कश्मीर शब्द बन गया।
एक अन्य विद्वान के अनुसार कश्मीर ‘कस’ और ‘मीर’ शब्दों के योग से बना है। 'कस' का अर्थ है स्रोत तथा 'मीर' का अर्थ है पर्वत। चूंकि यह घाटी चारों ओर से पर्वतों से घिरी हुई है तथा यहां स्रोतों की अधिकता है, इसलिए इसका नाम कश्मीर पड़ गया।
कुछ विद्वान् ‘कश्मीर’ शब्द की व्युत्पत्ति 'काशगर' तथा 'कश' आदि से मानते हैं । उक्त सभी मतों में से कश्यप ऋषि से सम्बन्धित मत अधिक समीचीन एवं व्यावहारिक लगता है।
shiben rainaDr. Shiben Krishen Raina
Currently in Ajman (UAE)
Member, Hindi Salahkar Samiti,
Ministry of Law & Justice (Govt. of India)
Senior Fellow, Ministry of Culture (Govt. of India)
Dr. Raina's mini bio can be read here:
http://www.setumag.com/2016/07/author-shiben-krishen-raina.html