हाल में हुए क्षेत्रीय चुनाव परिणामों से विदित है कि देश की जनता ने भाजपा को प्रताड़ना दे कर पार्टी के मुखियाओं को एक स्पष्ट सन्देश भेजा है. इस चुनाव परिणाम से मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि नुक्कड़ और नाई की दुकान में जो आम जनता की राजनीतिक विश्लेषण चल रही थी, उससे जनता में रोष पिछले कई महीनों से बढ़ता हुआ नज़र आ रहा था. बार बार यही इल्जाम लग रहे थे की सरकार ने कीमत पर काबू रख पाने में कोताही की और देश में नौकरियां नहीं बढीं.
क्या ये इल्जाम बे सर-पैर के थे या उनमे कुछ तथ्य भी था इसपर नज़र डालनी जरूरी है जिस से हम लोग अगले चुनाव में इस सरकार के बारे में फैसला नैतिकता और तथ्यों के आधार पर कर सकें.
मोदी सरकार से बहुत सारी गलतियाँ हुईं. प्रधानमंत्री की चुप्पी उनके इस पराजय का मुख्य कारण बनी. कुछेक ऐसी गलतियाँ इस सरकार से ऐसी हुईं जिसका मुंह खोल कर स्पष्टीकरण नहीं संभव था. प्रधानमंत्री को गोरक्षकों को जहाँ गलत ठहराना चाहिए था, वहां वे चुप रहे. उनहोंने पटेल की मूर्ती बनवाया, पर उसके औचित्व को भी देश को समझाने की जहमत नहीं उठाया. मूर्ती उनके लिए मोहम्मद बिन तुगलक की दौलताबाद बन गयी. कैसे बताते कि क्यों बनवाया? जहाँ बनवाया वहां क्यों बनवाया? सरकारी खजाने का क्या यही उपयोग सही था? इन सभी सवालों का वह मुंह खोल कर भी जवाब नहीं दे सकते थे, क्योंकि मूर्ती बनवाना गुजराती कौमपरस्ती के सिवा कुछ नहीं था – ये आप जानते हैं, मैं जानता हूँ, और चौक पर हजाम की दूकान चलने वाला लल्लन नाई जानता है. पिछले दिनों लल्लन के दूकान में सारे दिन यही चर्चा रही है.
गोरक्षकों ने अपने आपको स्वनियुक्त समाज का ठेकेदार समझ लिया था और आये दिन कुछ ऐसा कर जाते थे जिसपर सही सोच वाला हर हिन्दुस्तानी थूकता था – भले वो हिन्दू हो या मुस्लमान. मोदी हमेशा चुप रहते थे. अंतर्राष्ट्रीय दायरे में मोदी सचिन तेंदुलकर बने हुए थे, पर आंतरिक मामलों में ऐसा प्रतीत होता था कि हिंदुस्तान की रेल के इंजन का ड्राईवर सो गया हो और गाडी स्वतः चल रही हो. बहुत सारे ऐसे मुकाम आये जहाँ मोदी बोल कर लोगों के असंतोष को कम कर सकते थे पर चुप रह कर बात को टाल गए. नदी में गिर कर पीठ पर लदे नमक को बहा देने वाला मनमोहन सिंह का तरीका जो हाथ लग चुका था!
मोदी की टीम बहुत कमजोर है. जो है मोदी हैं. अपने अहम् में मतवाले मोदी ने कभी भी ढंग की टीम नहीं बनाई और ना ही कुछ ऐसे लोगों को तैयार किया जो उनके बाद उनके राजनीतिक वारिस हो सकें. खैर हिन्दुस्तानियों की यह जेनेटिक खामी रही है – कि हम में से हर एक अपने आप में बहुत तेज है, पर अगर एक टीम में काम करनी हो तो सब एक दूसरे की टांग खींचने लगते हैं और हर चीज में राजनीति का खेल शुरू कर देते हैं. इसी डर से शायद मोदी ने ना अपने राजनीतिक वारिस चुने और ना ही एक सफल टीम बनाया. एक चटुआ बटुआ के नाम पर अमित शाह हैं जिनके कलाई पर लाल धागे की सा संख्या दिन-ब-दिन बढती जाती है.
यह तो हो गयी मोदी की बात, अब आइये हिन्दुस्तानियों की कमियों पर नज़र डालें. हमारे देश की जनता को सरकारी स्तन का पान करना ही अपना किरदार दिखता है. हिंदी भाषी बोलते हैं - “मोदी ने नौकरियां बढ़ाने के विषय में कुछ नहीं किया”; पढ़े लिखे इलीट बोलते हैं, “ Nothing was done to address the employment issue“. मेरा कहना है कि सरकारी क्षेत्र की नौकरियां को सारी नौकरिओं का ५% होनी चाहियें. ९५% नौकरियों का बनाना निजी क्षेत्र का काम है. निजी क्षेत्र को लोगों को नौकरियां देने के लिए कारखाने खुलने थे. क्या कारखाने खुले?
नहीं!
क्यों नहीं? क्या परमिट लेने बहुत मुश्किल था?
नहीं, मोदी सरकार ने तो इसे बहुत आसान कर दिया था.
क्या लोन मिलना मुश्किल था?
नहीं, लोन लेने के लिए सरकर ने बहुत प्रोत्साहन दिया था!
फिर? फिर क्यों कारखाने नहीं खुले और हम लोगों ने चीन से प्रतियोग क्यों नहीं शुरू किया?
यहीं पर देश की जनता फेल हुई है. मोदी की कुछ कमियां जरूर रही हैं. पर हम लोग भी सरकार पर आसरा लगाए बैठे रहे और औद्योगिक विकास को निजी क्षेत्र ने नहीं शुरू किया.
खैर बीती बातें बीती बातें है. सीख ले कर आगे चलते जाना है. मोदी के लिए अब एक अच्छी टीम बनाना अनिवार्य है. औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक पार्क बना कर सरकार को निजी क्षेत्र के उद्दमियों को उद्योग शुरू करवाने होंगे और उनके उत्पाद को निर्यात करने के लिए विदेशी सरकार और खरीदारों से सहमति भी बनानी होगी. मोदी को अब अपनी टीम के साथ अपने पार्टी में ऐसे पढ़े लिखे और अकलमंद युवा लाने होंगे जो उनके बाद उनकी एजेंडा को ले कर चले और उनके बाद उनकी मूर्ती की जगह हिंदुस्तान को एक सुनहरा भविष्य दे सके जिसके रचईता के जिक्र पर लोग मोदी का नाम लें. ऐसा नहीं हुआ तो इतिहास के डस्ट-बिन में आज के नेता डाल दिए जायेंगे.