एक ही उल्लू काफ़ी था बर्बाद गुलिस्तां करने को

हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा?

आज मैं शर्मिंदा हूँ. मैं समझता था कि मेरा ताल्लुक एक प्राचीन संस्कृति से है जिसमें बुद्धिजीवी प्रवृतिओं को प्राथमिकता देने की परंपरा रही है. हर समाज में उल्लू होते है. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि इतने उल्लू गुलिस्तान में आ बैठेंगे और अपनी बोली बुलंद कर हिंदुस्तान से जुड़े हर सीधी सोच वाले बुद्धिजीवी के सर को शर्म से झुकवा देंगे.

जब पाकिस्तान के एक इंजीनियर ने पानी से चलने वाली गाड़ी बनाने का एलान किया तो विश्व भर में उनकी बड़ी हंसी उडी थी. फिर पाकिस्तान से खबर आई की वे एक ऐसे जनरेटर का इजाद करने में लगे हैं जिसमे वे एक जिन्न को पकड़ कर उसे बिजली पैदा करने को बाध्य करेंगे. पाकिस्तान के इन उल्लुओं की बोली तब बुलंद हुई जब एक मजहबी पागल जिया-उल-हक़ ने सत्ता संभाली और ऐसी सोच को प्रोत्साहन दिया.

आज हिंदुस्तान के सन्दर्भ में भी ऐसा ही समाचार पढ़ने को मिला. बी. बी. सी. पर खबर छपी जिसका शीर्षक था: India Scientists dismiss Einstein’s theories (भारत के वैज्ञानिकों ने आइन्स्टीन के थ्योरी को ख़ारिज कर दिया). हाय री किस्मत ! क्या हम भी पाकिस्तान हो गए हैं? हमारे हर शाख पे ये उल्लू क्यों बोल रहे हैं ? ये इस लिए बोल रहे हैं क्योंकि नरेन्द्र भाई मोदी के भारत में ऐसा माहौल तैयार हो रहा है जो इन उल्लुओं की आवाज़ को प्रशस्त करता है. चुनावी समीकरणों के चक्कर में नरेन्द्र मोदी ऐसे तत्वों को मूक समर्थन दे तो रहे हैं, पर हो सकता है कि इस राक्षस को खुश रखना इनके लिए आगे चल कर बहुत भारी पड़ जाये. गलत गलत ही होता है. जो बात सामान्य बुद्धि (common sense) की कसौटी पर खरी नहीं उतरती, उसे इस तरह मूक रह कर समर्थन देना जग हंसाई का कारण बन गया है.

भारतीय विज्ञान कांग्रेस में चोगा पहन कर मुख्य अथिथि के रूप में सत्र का उद्घाटन नरेन्द्र मोदी ने किया. आइये इसी सत्र में भारत के कुछ पढ़े लिक्खे समझे जाने वाले वैज्ञानिकों नें जो बातें कही उसके कुछ नमूने देखते हैं (जो कि बी. बी. सी. के एक हाल के रिपोर्ट से उद्धरित हैं):

जी. नागेश्वर राव, जो आंध्र प्रदेश के उप-कुलपति (vice chancellor) हैं, ने यह कह कर अपने चेहरे पर कालिख पोत लिया कि रावण के पास 24 किस्म के विमान थे और श्री लंका में उनके उतरने के लिए बहुत सारे हवाई अड्डे भी थे.

तमिल नाड़ के एक बेनाम वैज्ञानिक ने यहाँ तक कहा कि न्यूटन और आइन्स्टीन दोनों के शोध गलत हैं और गुरुत्वाकर्षण के लहरों का नाम “नरेन्द्र मोदी लहर” होना चाहिए.

डॉ. के. जे. कृष्णन ने कहा कि न्यूटन गुरुत्वाकर्षण के प्रतिघाती (repulsvie) बालों को नहीं समझता था और आइंस्टीन गुमराह था!

ऐसे बेतुके तर्कों से विज्ञान ही नहीं बल्कि तर्कयुक्त सोच (rational thought) भी आहत होता है. ऐसा माहौल तभी पैदा होता है जब देश का मुखिया खुद ही बेतुकी की पराकाष्ठ बनता है जब वो ये कहता है कि प्लास्त्रिक सर्जरी भारत में हजारों सालों पहले भी होती थी.

ग्रंथों और दंतकथाओं का आधार तो पूर का पूरा काल्पनिक ही होता है. उसे बिना सबूत के सच मान लेने वाले वैज्ञानिक की डिग्री रद्द कर दी जानी चाहिए. जिस व्यक्ति को औपचारिक शिक्षा न मिली हो उसकी शायद ऐसी खता माफ़ भी कर दी जाये पर विश्वविद्यालाओं के प्रांगन से स्नातक हो कर अपने को वैज्ञानिक कहने वालों को ऐसी धारणा रखने के लिए कठोर दंड मिलना चाहिए और उनको विज्ञान के क्षेत्र से पृथक कर देना चाहिए.

विज्ञान को छोड़िये, भक्तों की तो यह हालत है कि जब हिंदुस्तान के सरोच्च न्यायलय ने समलैंगिकता को विधिसम्मत करार कर दिया तो कुछ लोगों ने बयान दिया कि हजारों साल पहले समलैंगिकता हमारी परंपरा थी – इसी कारण से समलैंगिकता खजुराहो के लक्ष्मण मंदिर पर पत्थर की मूर्तियों द्वारा दर्शाई गयी थी. ये भक्त यह भूल गए कि उन मंदिरों में केवल समलैंगिकता ही नहीं दर्शायी गयी थी, पर जानवरों से शारीरिक संबंध की भी मूर्तियाँ हैं. तो फिर तो इन भक्तों को जानवरों से सम्भोग को भी अपनी परंपरा मान लेनी चाहिए !

भक्ति के चक्कर में अपने को पाकिस्तानियों के स्तर पर उतार कर दुनिया की आँखों में गिरना हिंदुस्तान की छवि के लिए बिलकुल अच्छा नहीं है. भक्ति देश की, संस्कृति की, परंपरा की, भाजपा की या मोदी की अगर की जाये तो सर को कंधे पर ही रख कर की जाए – ताखे पर नहीं.